Medicinal Plant Contract Farming किसान करें अधिक कमाई जानें पूरी प्रक्रिया : Business Mantra - Business Mantra बिजनेस मंत्रा : सफलता की कुंजी

Medicinal Plant Contract Farming किसान करें अधिक कमाई जानें पूरी प्रक्रिया : Business Mantra

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Medicinal Plant Contract Farming किसान करें अधिक कमाई जानें पूरी प्रक्रिया : Business Mantra



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हलो फ्रेंड्स,

बिजनेस मंत्रा ब्लाग पर आप सभी का स्वागत है. आज के दौर में दुनिया में हर कोई अच्छा और ज्यादा पैसा कमाना चाहते है. किसान खेतों में रात दिन कड़ी मेहनत करते है ताकि ज्यादा से ज्यादा लाभ पा सकें.

जो किसान परंपरागत खेती के साथ साथ आधुनिक खेती को भी अपनाते है तो उन्हें अच्छा लाभ मिल सकता है क्योंकि पुराने तरीके से खेती करने पर पर उतना मुनाफा नहीं कमा पाते है. इसलिए उन्हें हर उस नए तरीके और उपयों को अपना होगा जिसेस उसकी आय बढ़ सके.

कम खर्चे में अधिक मुनाफा कमाने के लिए देश में कुछ वर्षो में औषधीय फसलों की तरफ किसानों का रूख बढ़ा है और इस तरह की खेती कर कई किसान मालामाल हुए है.

आज हम ग्रामीण बिजनेस के अंतर्गत ग्रामीण किसान भाईयों को जानकारी दे रहे है औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में. इन औषधीय पौधों की खेती काफी कम खर्चे में बेकार बंजर और पहाड़ी इलाकों में की जा सकती है.



जिन्हें पता है वे औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करके इससे अच्छा लाभ कमा रहे है. जिन्हें पता नहीं है हम उन्हें औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में जानकारी दें रहे हैं.

क्या है कॉन्ट्रैक्ट खेती

औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में उत्पादक और खरीददार दोनों के बीच कीमत पहले से ही तय हो जाती है. फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का वक्त फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है.

कई बार देखा गया है कि खरीददार ना मिलने पर किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है किसान और बाजार के बीच तालमेल की कमी.

ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जरूरत महसूस की गई. ताकि फसल की बर्बादी को रोका जा सकें. और किसानों को भी उनके उत्पाद का अनुकूल लाभ मिल सकें.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मकसद है फसल उत्पाद के लिए तयशुदा बाजार तैयार करना और कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश को बढ़ावा देना.

कई काॅर्पोरेट कंपनियों ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को सुविधाजनक बनाने की कोशिश की है जिससे उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, निश्चित समय पर और कम कीमत में मिल सकें.

जैसा कि हम ने पहले भी कहा है कि खेती को यदि बिजनेस के तौर पर किया जाएं तो छोटे किसान भी काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत इस बार बेस्ट औषधीय फसलों की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं.



एलोवेरा की खेती


एलोवेरा जिसे ग्वारपाटा, घृतकुमारी आदि कई नामों से जाना जाता है. एलोवेरा एक औषधीय फसल है. जिसकी खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है. एलोवेरा का उपयोग प्राचीन समय से ही किया जा रहा है. एलोवेरा में अनेकों बीमारियों को ठीक करने का गुण पाया जाता है. इसलिए इसकी मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है



     


एलोवेरा पौधे की रोपाई आप साल भर में किसी भी समय कर सकते हैं, लेकिन बेहतर होगा कि जुन-जुलाई माह के दौरान ही पौधों की रोपाई की जानी चाहिए.

रोपाई के समय एक लाइन से दूसरे लाइन की दुरी 50 सेंटिमीटर और एक पौधे से दूसरे पौधे की दुरी 50 सेंटिमीटर होनी चाहिए.

इस तरह से पौधों की रोपाई करने पर 1 हेक्टयर भूमि में 10 हजार पौधों की जरूरत होती है. पौधे की लम्बाई 10 से 15 सेमी होने पर कटाई करनी चाहिए.

सिंचाई के लिए ड्रिप एंव स्प्रिंकलर प्रणाली ठीक रहता है साल भर में 3 से 4 बार सिंचाई की जरूरत होती है.

और बेहतर होगा की गर्मी के दिनों में 20 से 25 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें. एलोवेरा की खेती के दौरान इस बात का ध्यान रखें की पौधे के सामने पानी जमा ना हो.

एलोवेरा को कहां और कैसे बेचा जाएं



एलोवेरा की यदि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जाएं तो किसानों के लिए फायदेमंद होता है. पिछले कुछ वर्षों में एलोवेरा के प्रोडक्ट की संख्या तेजी से बढ़ी है. कॉस्मेटिक, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने के हर्बल प्रोडक्ट और अब तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी इसकी डिमांड होने लगी है.

एलोवेरा का इस्तेमाल हेल्थकेयर, कॉस्मेटिक, टेक्सटाइल और हर्बल दवा बनाने में होता है. भारत में सबसे अधिक एलोवेरा की खपत करने वाली कंपनियों में पतंजलि, हिमालया, डाबर, बैद्यनाथ जैसी और भी कई हर्बल दवा कंपनियां है जो की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग के अंतर्गत किसानों को पौधे देती है और उनसे तैयार फसल खरीदती है.

रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियां भी किसानों से सीधे पल्प और पत्तियां खरीदती हैं. आप जिस कंपनी से या नर्सरी से एलोवेरा के पौधे खरीदे उसकी के साथ बेचने का अनुबंध भी कर लें.

तुलसी की खेती

तुलसी के औषधीय गुण की वजह से इसका इस्तेमाल दवा बनाने के काम आता है खास कर इसका सबसे अधिक उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के लिए किया जाता है. आजकल सौंदर्य प्रसाधन के रूप में भी इसकी काफी मांग बढ़ी है. टूथपेस्ट, साबून, तेल, सेंट से लेकर खाद्य सामाग्री में भी इसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. विदेशो में तुलसी का इस्तेमाल मसालों और फ्लेवर के रूप में भी किया जाता है.

तुलसी की खेती हर तरह के जमीन में आसानी से की जा सकती है. आजकल तुलसी की कई उन्नत किस्में तैयार की गई है. यह किस्में 120 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है. इस पर बीमारी का असर भी कम होता है और इसकी पैदावार भी काफी अधिक होती है. इसे तैयार करने में भी काफी कम खर्च आता है.

तुलसी की खेती कम पानी और कम लागत में ज्यादा फायदा देने वाली औषधीय फसल है. भारत में कई राज्यों के सरकारें तुलसी के खेती करने पर अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है.

एक हैक्टर खेत में तुलसी की खेती करने में 15 से 20 हजार रूपए खर्च आता हैं. इस तैयार फसल से 3 से 4 लाख की इनकम हो जाती है. इस तरह आप तुलसी की खेती करके काफी कम दिनों में अच्छी कमाई कर सकते हैं.



तुलसी को कहां और कैसे बेचा जाएं

तुलसी में सबसे अधिक औषधीय गुण पाएं जाता है. इसलिए आयुर्वेदिक दवा कंपनियों में इसकी सबसे अधिक खपत होती है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत आप तुलसी के खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते है. इसके लिए आप आयुर्वेदीक दवा कंपनियों से संपर्क कर सकते हैं.

तुलसी के बीज और पत्तियों को सीधे मंडियों में बेच सकते हैं. बीज की कीमत लगभग 120 से 150 रूपए प्रति किलो या उससे कम ज्यादा भी हो सकती है. तुलसी के बीज बेचने के लिए मध्यप्रदेश की नीमच मंडी सबसे बेस्ट है. यहां सैकड़ों किस्म के औषधीय की खरीदी होती है.

शतावरी की खेती


शतावरी को कई नामों से जाना जाता है, इसका उपयोग शक्ति बढ़ाने, दूध बढ़ाने, दर्द निवारण एवं पथरी संबंधित रोगों के इलाज के लिए किया जाता है.

शतावरी की खेती करने के लिए 10 से 15 सेल्सियस तापमान को उत्तम माना जाता है. इसके लिए खेत की जुताई जुलाई अगस्त माह में कर लेनी चाहिए. बुआई के लिए प्रति एकड़ 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है.

शताबरी की फसल में भी काफी कम सिंचाई की आवश्यकता होती है. जब पौधें के पत्ते पिले पड़ जाए तो इसकी खुदाई कर के रसदार जड़ों को निकाल ले.

गीली जड़ों को अच्छे साफ करके तेज धूप में रख कर सूखा लें.

शतावरी को कहां और कैसे बेचा जाएं

शतावरी की बिक्री दिल्ली, लखनउ, कानपुर, बनारस में बड़े पैमाने पर होती है. शतावरी के बीच उद्यानिकी विभाग, सीमैप और निजी दुकानों पर आसानी से हो जाती है.

लेमन ग्रास की खेती

लेमन ग्रास का सबसे अधिक उपयोग लेमन टी बनाने में किया जाता है. इससे निकलने वाले तेल का उपयोग कई तरह के के सौंदर्य प्रसाधन एवं खाद्य सामग्री में फ्लेवर के तौर पर किया जाता है. भारत में सीमैप द्वारा इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.



किसानों को पौधे देने के साथ साथ प्रशिक्षण भी दे रही है जिसमें तेल निकालने से लेकर मार्केटिंग तक की जानकारी उपलब्ध करवा रही है इसकी खेती करने के लिए पहाड़ी क्षेत्र उपयुक्त रहता है. जैसे की राजस्थान के बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ आदि स्थान लेमन ग्रास की खेती के लिए उपयुक्त है.

लैमन ग्रास का पौधा साल भर में तीन बार उपज देता है. हर कटाई के बाद इसकी सिंचाई करने से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. लेमन ग्रास की खेती करने के लिए सबसे पहले अप्रैल मई माह में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है.

प्रति हेक्टेयर 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है. और प्रति एकड़ में लगभग 2000 पौधे लगाएं जा सकते है. इस फसल को भी काफी कम सिंचाई की आवश्यकता होती है.

लेमन ग्रास की कटाई 120 दिनों के बाद शुरू हो जाती है. इसके बाद दूसरी और तीसरी कटाई 50 से 70 दिनों के अंतराल में होती है.

लेमन ग्रास से प्रति एकड़ 100 किलो ग्रास तेल का उत्पादन होता है जिसकी बाजार में कीमत 700 रूपए किलो से लेकर 900 रूपए किलो ग्राम तक होती है.

लेमन ग्रास को कहां और कैसे बेचा जाएं

आप कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत टी कंपनियां और ब्युटी प्रोडेक्ट कंपनियों से संपर्क कर सकते हैं.

आर्टीमीशिया की खेती



आर्टीमीशिया एक बहुत ही गुणकारी औषधीय पौधा है इसका उपयोग मलेलिया की दवाई इंजेक्शन और टेबलेट बनाने में होता है. इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सीमैप द्वारा खेती करने और उसकी ट्रेनिंग दी जाती है.

इसकी खेती करने के लिए नंम्बर दिसेम्बर में नर्सरी तैयार करना चाहिए और फरवरी माह में इसको खेतों में लगाना पड़ता है.

इस फसल को बहुत कम खाद और कम पानी में तैयार किया जा सकता है.  इससे वर्ष में तीन बार उपज ली जा सकती है. इसके बीज कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कंपनी मुफ्त में उपलब्ध करवाती है.

बीज के लिए किसान सीमैप लखनउ और इफका लेब मध्यप्रदेश से भी संपर्क कर सकते हैं.

स्टीविया की खेती


स्टीविया एक लोकप्रिय और लाभदायक औषधीय पौधा है. यह पौधा अपनी पत्तियों की मिठास के कारण जाना जाता है. इसमें भरपूर मीठ होने के बावजूद इसमें  शर्करा की मात्रा नहीं होती है. यह एक शून्य कैलोरी उत्पाद है और यह मधुमेह के रोगियों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है.

यह रोगी के शरीर में इंसुलिन बनाने में मदद करता है इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए मध्यप्रदेश, महाराष्ट, गुजरात, झारखंड आदि कई राज्यों में खेती की जा रही है.

स्टीविया की खेती के लिए अर्द्ध और अर्द्ध उष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. ध्यान रहे जिन इलाकों का तापमान शून्य से नीचे जाता है वहां इसकी खेती नहीं करनी चाहिए.

भले ही इसकी खेती साल में कभी की जा सकती है लेकिन इसकी खेती के दौरान कई बातों का ध्यान में रखना जरूरी है.

स्टीविया की खेती के लिए दोमट मिटटी उपयुक्त है यह फसल सूखा सहन नहीं कर सकती इसलिए इसकी सिंचाई 10 दिनों के अंतराल में करना चाहिए. साल भर में इसकी तीन से चार बार कटाई की जाती है.

अंतराष्टीय मार्केट में इसकी कीमत 300 से 400 रूप्ए प्रति किलो ग्राम है. इसकी खेती काॅन्टैªक्ट फार्मिंग के तहत करनी चाहिए जिससे अच्छा लाभ कमाया जा सकें.

इसी तरह और भी बहुत सी औषधीय पौधे है जिनकी खेती कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत करके किसान भाई अच्छा लाभ कमा सकते है.

सेंट्रल इंस्टीटियुट ऑफ मेडिसीन एंड एरोमेटिक प्लांट यानी सीनैप लखनऊ द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हर तरह से मदद कर रही है.

स्टीविया की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई राज्यों में शासन द्वारा इसके लिए अनुदान भी दिया जा रहा है. इस बारे में और अधिक जानकारी के लिए आप जिले के उद्यान वानिकी विभाग से सम्पर्क कर सकते हैं.

स्टीविया को कहां और कैसे बेचा जाएं

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग के अलावा आजकल ऑनलाइन के माध्यम से भी औषधीय पदार्थो की बिक्री होती हैं. कई ईकाॅर्मस वेबसाइट जो ऐसी चीजों की बिक्री करके अच्छी इनकम कर रही हैं. आप चाहे तो इन ई-काॅमर्स वेबसाइट में अपना एकाउंट बनाकर इसके माध्यम से फसल बेच सकते है.

फ्रेंड्स, औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में दी गई जानकारी पसंद आने पर लाइक करें. जो लोग चैनल पर पहली बार आएं है जिन्होंने ब्लाग को अब तक सबक्राइब नहीं किया है वे सबक्राइब जरूर करे दें.


औषधीय पौधों की खेती की ट्रेनिंग के बारे में अधिक जानकारी के लिए सीमैप के दिए गए लिंक पर क्लिक करें।


 

औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग के लिए नीचे दिए गए कंपनियों से सम्पर्क कर सकते हैं।



आज के लिए इतना ही फिर मिलेंगे नए बिजनेस मंत्रा के साथ. गुड बायटेक केयर. (काॅपीराइट बिजनेस मंत्रा)

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